भुजंगप्रयात छंद [Bhujangprayat Chhand] विधान : यगण×4 कुल 12 वर्ण लगी आग देखो,जला प्रेम सारा बना आज बैरी,रहा भ्रात प्यारा कभी सोचता हूँ,दिखावा भला क्यों रहा जो हमारा,उसी ने छला क्यों (2) मिलो आप कान्हा,मिले… Read more »
भुजंगप्रयात छंद [Bhujangprayat Chhand] विधान : यगण×4 कुल 12 वर्ण लगी आग देखो,जला प्रेम सारा बना आज बैरी,रहा भ्रात प्यारा कभी सोचता हूँ,दिखावा भला क्यों रहा जो हमारा,उसी ने छला क्यों (2) मिलो आप कान्हा,मिले… Read more »
छंद : आल्हा/वीर शैली : व्यंग्य अलंकरण : उपमा,अतिशयोक्ति --------------------------------------------- चींटी एक चढ़ी पर्वत पे, गुस्से से होकर के लाल । हाथी आज नही बच पावे, बनके आई मानो काल । -------- कुल मेटू तेरे मैं सारो, कोऊ आ… Read more »
कुण्डलिया Kundaliyan बीती बातें भूल मत, बीती देती सीख बीती से नव सर्जना, बीती नवयुग लीक बीती नवयुग लीक, बढ़े चल जुड़कर आगे बीती पर कर शोध,छोड़ मत इसको भागे कहे मित्र उत्कर्ष , यहाँ यादें है जीती क्यों भूलो फिर… Read more »
बैठ प्रिया, तटनी तट पे, यह सोचत है कब साजन आवे । साँझ ढली रजनीश उगो, विरहा बन बैरिन मोय सतावे । सूख रही मन प्रेम लता, यह पर्वत देख खड़ो मुसकावे । देर हुई उनको अथवा, कछु और घटो यह कौन बतावे । ✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” श्रोत्… Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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