उत्कर्ष दोहावली राधा जपती कृष्ण को, कृष्ण राधिका नाम प्रीत निराली जग कहे, रही प्रीत निष्काम राम नाम ही प्रीत है, राम नाम वैराग राम किरण है भोर की, रे मानस मन जाग मन की मन में राखि ले,जब तक बने न काम निज कर्मन पर ध्यान… Read more »
उत्कर्ष दोहावली राधा जपती कृष्ण को, कृष्ण राधिका नाम प्रीत निराली जग कहे, रही प्रीत निष्काम राम नाम ही प्रीत है, राम नाम वैराग राम किरण है भोर की, रे मानस मन जाग मन की मन में राखि ले,जब तक बने न काम निज कर्मन पर ध्यान… Read more »
छंद : चौपाई + दोहा ---------------------------- नया टैक्स है आने वाला । बन्द करे गड़बड़ घोटाला ।। क़िस्त टैक्स की जमा कराओ । उचित समय पर इनपुट पाओ ।। दस तारीख रही आमद की । पन्द्रह कर दीनी जामद की ।। जामद आमद स्वयं मिलाओ । चोरी करो न चोर … Read more »
विधा : मनहरण कवित छंद झूठ बोल छल रहे,झूठ से ही चल रहे, झूठ की इस झूठ को,दिल से निकालिए । झूठे रिश्ते झूठा जग,झूठन ही यहाँ सग, झूठे इस प्रपंच में,न खुद को डालिए । भरी यहाँ मोह माया,संभल न मन पाया, भ्रम से निकाल अब,मन को संभालिए । तारना है खुद को तो नेक राह … Read more »
उत्कर्ष दोहे ---------------- देख मुसीबत जप रहे,राम नाम अविराम । पहले ते जपते अगर,तो डर का क्या काम ।। राम नाम ही प्रीत है,राम नाम वैराग । राम किरण है भोर की,रे मानस मन जाग ।। नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” Read more »
मेरे विचार : धर्म धर्म का शाब्दिक अर्थ तक नही जानते लोग,और स्वयं को धर्म अनुयायी कहते है । धारण करने योग्य सभी तत्व चाहे वह विचार,गुण,कर्म,व्यवहार,जो उद्देश्य,व जीवन का सच्चा अर्थ साकार करते है , एवं उन सिध्दांतों पर चलकर जीवन को श्रेष्ठता की प्राप्ति होती है । धर्म … Read more »
दोहा ----- लेख भले ही चोर लो,कला न पावें चोर लिखना मेरा कर्म है,समझ सके कब ढोर रोला ------ समझ सके कब ढोर,काम भूसा से रहता । कुछ गुण रहे विशेष,चोर चोरी तब करता । सुनो “सुमन उत्कर्ष”,हवा से ही पात हलें । चोरी सकें न रोक ,छुपा लो लेख भले… Read more »
कलाधर छंद : Kaladhar Chhand शिल्प बिधान :- कलाधर छंद Vidhan : 21*15 + 2 (गुरु+लघु×15+गुरु) ------------------------------------------------ कवित्त जाति के इस वर्णिक छंद का प्रत्येक चरण चंचला और चामर छंद के मेल से बना है । चंचला छंद में चार चरण होते है ज… Read more »
रास छंद (सविधान) Raas Chhand विधान – 22 मात्रा 8-8-6 पर यति,अंत में 112, चार चरण,क्रमागत दो-दो चरण तुकांत समय कीमती,रहा सदा ही,चेत करो समय नही है,पास तुम्हारे,ध्यान धरो मोह पाश में,बंधे मूर्खो,झूम रहे भूल ईश को,नित्य मौत पग,चूम रहे … Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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