गजल : प्रेम   पढ़ता  रहा   नित्य  ही   [Gazal : Prem Padta Raha Nitya Hi]  बह्र : 212 212 212 212 प्रेम   पढ़ता  रहा   नित्य  ही  मीत मैं सीख  पाया  नहीं   बाद  भी  प्रीत  मैं हार   से   हार   कर   हारता  ही गया पर  न  जाना कभी हार क्या जीत मैं … Read more »