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उत्कर्षदीप जुगलबंदी - ०२ )

उत्कर्ष  दीप   जुगलबंदी - ०२  नहीं  होता  अशुभ  कुछ  भी, सदा  शुभ ये मुहब्बत है बसाया    आपको   उर    मे, तुम्हीं में आज भी रत है बताऊँ     मैं    प्रिया    कैसे, रहीं जब दूर तुम  मुझसे मिलन हो,श्याम श्यामा सा, कहो क्या ये  इजाजत है - नवीन श्रोत्रिय उत्कर्… Read more »

उत्कर्षदीप जुगलबंदी [आधार विधाता छंद]

उत्कर्ष   जुगलबंदी तुम्हारा    देखकर  चेहरा, हमें  तो  प्यार  आता है तुम्हारे  हाथ   का  खाना, सदा मुझको  लुभाता है बसे हो आप  ही  दिल  मे, बने हो प्राण इस तन के तुम्हारी आँख का काजल, मगर  हमको जलाता है नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष तुम्हारी  बात  पर   सज… Read more »

संकल्प : मनहरण कवित्त/घनाक्षरी

आन बान  शान रख, और  पहचान   इक भारती   का वीर रख, अडिग  जुबान  को काट   डाल रार वाली, खरपतवार      जड़ चूर  कर  डाल गिरि, जैसे  अभिमान  को दीमक  लगी हो जित, उत भी  नजर डाल देश  से  बाहर   कर, देश द्रोही  श्वान  को देश  की  अखंडता के, लिये ये जरूरी यज… Read more »