मनमनोरम छंद रावण उवाच : देख मेरी दृष्टि से तू जान पायेगा मुझे तब तारना है कुल मुझे वह वक्त आयेगा चला अब हूँ कुशल शासक,पुजारी ईश का हूँ मैं अभी भी राम भव से तारने वापस न आएंगे कभी भी आस लेकर जानकी जपती रही है नाम जिन… Read more »
मनमनोरम छंद रावण उवाच : देख मेरी दृष्टि से तू जान पायेगा मुझे तब तारना है कुल मुझे वह वक्त आयेगा चला अब हूँ कुशल शासक,पुजारी ईश का हूँ मैं अभी भी राम भव से तारने वापस न आएंगे कभी भी आस लेकर जानकी जपती रही है नाम जिन… Read more »
कृष्ण सुनो अरदास मम, चाह तुम्हारा साथ लोभ, द्वेष उर से हरो, तारो भव से नाथ दारू कब घी सम रही, पी कर भरो न जोर बाद गलाती जिस्म ये, है बीमारी घोर अलग -अलग उपनाम है,अलग-अलग अंदाज करना मत मधुपान तुम,यह दुर्जन का काज कभी… Read more »
प्रमिताक्षरा छंद विधान : सगण,जगण,सगण,सगण=12 (१) पहचान ध्येय, पथ,जीवन,को उस ओर मोड़ फिर तू मन को तज लोभ,द्वेष अरु मोह सभी भव ताल पार उतरे तब ही (२) यह मोह मित्र सबको छलता फँस मोहजाल,जीवन जलता कर जाप नित्य मन मोहन का यह सार एक इस … Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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