गीत : चलते चलते ------------------- चलते चलते कह भी दो, तुम प्यार करते हो-२ हां प्यार करते हो, सजन, तुम प्यार करते हो चलते चलते कह भी दो, तुम प्यार करते हो देखा जब से रूप तुम्हारा, नजरो पे छाये तुम राह निहारू, तुम्… Read more »
गीत : चलते चलते ------------------- चलते चलते कह भी दो, तुम प्यार करते हो-२ हां प्यार करते हो, सजन, तुम प्यार करते हो चलते चलते कह भी दो, तुम प्यार करते हो देखा जब से रूप तुम्हारा, नजरो पे छाये तुम राह निहारू, तुम्… Read more »
सुखेलक छंद : SUKHELAK CHHAND सुखेलक छंद विधान :- नगण,जगण,भगण,जगण,रगण, 7/8= 15 वर्ण जग सब भूल के,अब बुलाय राधिका सुध बुध खो बनी,सजन देख साधिका दरस करा मुझे,अब सुजान साँवरे हृदय जला रही,जगत मोह छाँव रे Sukhelak Chhnd Ka Vidhan Or Udahar… Read more »
चौपई/जयकारी छंद [ Chaupai-jaikari chand ] चौपई या जयकरी (15 मात्रा, अंत में 21 या गाल अनिवार्य, कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत चौपाई के चरण मे अंतिम एक मात्रा को कम कर देने से चौपई या जयकरी छंद का चरण बन जाता है। स्मरण रखने के लिए संक्षेप में - चौपाई - अ… Read more »
गजल : हाल जैसे रहें,मुस्कराते रहो Gazal : Haal Jaise Rahe Muskrate Raho 212-212-212-212[फाइलुन×4] ---------------------------------------- हाल जैसे रहें, मुस्कराते रहो अश्क हैं कीमती, मत गिराते रहो --------------------------------… Read more »
गाथा : दानवीर कर्ण की (आधार छंद : आल्हा) Gatha Daanveer Karn Ki (Aalha Chhand) दानवीर , कुंती का बेटा, कर्ण नाम जिसकी पहचान कथा सुनाऊँ आज उसी की , श्रोताओ तुम देना ध्यान शूरसेन राजा का संगी, कुन्तिभोज था जिनका नाम कोई … Read more »
दिग्पाल छन्द : Digpal Chhand यह मात्रिक छन्द है। यह २४ मात्रिक छन्द है । चार चरण, १२/१२ मात्रा पर यति, चरणान्त गुरु दो - दो पंक्ति समतुकान्त, इस छन्द की मापनी निम्न है- २२१,२१२२,२२१,२१२२ Example : उदाहरण Digpal Chhand Ka Vidhan Or Ud… Read more »
कनक मंजरी छन्द कनक-मंजरी छन्द विधान : यह वार्णिक छन्द है। गुरु का अर्थ गुरु, लघु का अर्थ लघु [ चार लघु + ६ भगण (२११)+ १ गुरु ] = २३ वर्ण , चार चरण, सभी समतुकान्त [ मापनी ११११,२११,२११,२११, २११,२११,२११,२ ] उदाहरण : अभी उपलब्ध नहीं .......... … Read more »
शंकर छंद [ Shanker Chhand ] शंकर छंद विधान : 16/10 अंत मे गुरु लघु क्रमशः दो - दो पंक्तियाँ समतुकांत दीन सुदामा की पुकार को, सुनो राधेश्याम आठ पहर जिसके अधरों पे, कृष्ण रहता नाम पाँच द्वार से भीख माँगकर, पूर्ण करता धर्म कैसा ये प्… Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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