------------------------------------------- अभिव्यक्ति के नाम पर, परोसी जा रही है, फूहड़ता,अब बदल चुका है, वह संकल्प, जो लिया था कभी, सभ्य समाज, और उसकी पुष्टता का, कभी दीपक बन, उजाला करने के, संजोये थे ख्वाब, मगर, लोकप... Read more »
------------------------------------------- अभिव्यक्ति के नाम पर, परोसी जा रही है, फूहड़ता,अब बदल चुका है, वह संकल्प, जो लिया था कभी, सभ्य समाज, और उसकी पुष्टता का, कभी दीपक बन, उजाला करने के, संजोये थे ख्वाब, मगर, लोकप... Read more »
जिंदगी कभी धूप की तरह , खिल उठती है , वो .... फूलों की मुस्कराती है , बारिश बनकर , तपती धरा को , संतृप्त कर देती है , घोल देती है फिजाओं में महक , कर देती है सुगन्धित , तन , मन , बेहिसाब लुटाती है , प्यार अपना , कभी … Read more »
शरीर हजारों लीटर पानी , उड़ेला गया बेहिसाब , महंगे साबुनों से पखारा , कई प्रकार के तेल , इत्र छिड़के गये , धूल , मिटटी से दूर , सूरज से छुपाये रखा , कभी ऐसा दिन नही , जब सँवारा न गया हो यह बदन , घिस घिस कर इसको उज्ज्… Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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