गाथा : भरतपुर नरेश महाराजा सूरजमल सुजान
शैली : आल्हा / वीर छंद (16/15 पदांत गुरु, लघु
भाषा : खड़ी / ब्रज मिश्रित
स्त्रोत्र : अंतर्जालीय पृष्ठ (विकिपीडिया, आदि)
इष्टदेव, गृहदेव सबै मिल, भरौ लेखनी में नव रंग
पंचभूत, महाभूत, बस्ती माँ, कृष्ण-राधिका, ब्रज सरकार
अष्ट देवियों, नव ग्रहों, नमन, करना दसों दिशा स्वीकार
सूर्य समान तेज है जाकौ लोहागढ़ कौ बू सरदार
बदन - देवकी कौ है जायौ सूरजमल, निर्भीक जुझार
आज कथा महारथी सूरज की,आल्हा में भर रह्यौ सुनाय
देवो किरपा करौ कलम पे, विघ्न होय तौ करौ सहाय
शुक्ल पक्ष द्वादश तिथि जन्मौ, लोहागढ़ कौ शेर सुजान
नाम सुनत दिल्ली धर काँपै, जाकी जाय न बरनी शान
सिनसिनवार,जाट, यदुवंशी, रहौ सिनसिनी जिनकौ गाम
लक्ष्मण जी कुलदेव आपके, जिनकौ भइया राजा राम
सोगरियागढ़ फतह करी है, शिशिर,नवासी,फागुन मास
लोहागढ़ उत बन्यौ ठिकानों, बसंत पँचमी दिन है खास
सूरज है पच्चीस बरस कौ, श्रोताओं धर लीजों ध्यान
वीरन कौ है वीर सूरजा, करौ भरतपुर कौ उत्थान
सगरी दिल्ली, उत्तर आधौ, हरियाणा औ राजस्थान
सूरज ही सूरज है रही है, काँपै सबरे मुगल, पठान
........ क्रमशः जारी............
लेखक : नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
ध्यानाकर्षण : इस रचना के सृजन का उद्देश्य किसी की निजी भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है, फिर भी किसी की निजी भावनाओं को किसी कारणवश ठेस पहुँची हो, अथवा इस रचना में किसी भी प्रकार की त्रुटि हो तो आप से मैं क्षमा प्रार्थी हूँ ।जानकारी के आभाव में त्रुटि होना, स्वाभाविक है । पुनश्चः क्षमा प्रार्थी
- नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
श्रोत्रिय निवास, बयाना
भरतपुर - राजस्थान
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