बैठ प्रिया, तटनी तट पे, यह सोचत है कब साजन आवे । साँझ ढली रजनीश उगो, विरहा बन बैरिन मोय सतावे । सूख रही मन प्रेम लता, यह पर्वत देख खड़ो मुसकावे । देर हुई उनको अथवा, कछु और घटो यह कौन बतावे । ✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” श्रोत्… Read more »
बैठ प्रिया, तटनी तट पे, यह सोचत है कब साजन आवे । साँझ ढली रजनीश उगो, विरहा बन बैरिन मोय सतावे । सूख रही मन प्रेम लता, यह पर्वत देख खड़ो मुसकावे । देर हुई उनको अथवा, कछु और घटो यह कौन बतावे । ✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” श्रोत्… Read more »
आपको एवं आपके सभी स्नेहीजनों को नवसंवतसर, घटस्थापना,गुड़ी पड़वा की हार्दिक मंगलकामनाये । शुभेक्षु : नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” Read more »
मत्तग्यन्द सवैया छंद (Mattgyandy Savaiya) (1) देख गरीब मजाक करो नहि,हाल बनो किस कारण जानो मानुष दौलत पास कितेकहु,दौलत देख नही इतरानो ये तन मानुष को मिलयो,बस एक यही अब धर्म निभानो नेह सुधा बरसा धरती पर,सीख सिखा सबको हरषानो … Read more »
छंद : मत्तग्यन्द सवैया ------------------------------- जोगिन एक मिली जिसने चित, चैन चुराय लिया चुप मेरा । नैन बसी वह नित्य सतावत, सोमत जागत डारिहु घेरा । धाम कहाँ उसका नहिं जानत, ग्राम, पुरा, ... Read more »
भोर भयी दिनकर चढ़ आया । दूर हुआ तम का अब साया ।। कर्मवीर तुम अब तो जागो । लक्ष्य साध यह आलस त्यागो ।। हार जीत सब कर्म दिलाता । ध्यान धरे वह मंजिल पाता ।। हार कभी न कर्... Read more »
शीर्षक : मेरा कृष्णा विधा : तांटक छंद ________________________________ पाप बढे जब भी धरती पर,तुमको सभी पुकारे है । रूप लिया गिरधर तब तुमने,आकर कष्ट उबारे है । कोइ कहे मन मोहन छलिया,काली कमली वारे है । जसु... Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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