मत्तग्यन्द सवैया : चित्र चिंतन Author:नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” 4/02/2017 12:59:00 pm बैठ प्रिया, तटनी तट पे, यह सोचत है कब साजन आवे । साँझ ढली रजनीश उगो, विरहा बन बैरिन मोय सतावे । सूख रही मन प्रेम लता, यह पर्वत देख खड़ो मुसकावे । देर हुई उनको अथवा, कछु और घटो यह कौन बतावे । ✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” श्रोत्रिय निवास बयाना Mattgyandyasavaiya
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