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Ghnakshari Chhand

Ghnakshari Chhand   जाति -पाँति धर्म नहीं, काम भेड़ियों की कोई ऐसे  भेड़ियों  को अब, मिल     मार   डालिये सामाजिक  सौहार्द को, कमजोरी  मान   रहे ऐसे शन्तिदूतों को भी, घर   से    निकालिये करते  वे   नित  पाप, क्षमा  दान  देते   आप दानवीर   बनके    यूँ, … Read more »

मनहरण कवित्त [घनाक्षरी छंद] Manharan Kavitt [Ghnakshari Chhand ]

Manharan Kavitt Chhnad  घनाक्षरी छंद : मनहरण कवित्त रावण  के  जैसा कृत्य, करते   है  आज   वही जिनको  है भान नहीं, राम    के    प्रताप  का रोम  रोम  उनका तो, काम,  लोभ  जपता है मोह   परिपूर्ण   होके, नाश     करें    आपका भूल    बैठे  रावण ने, प… Read more »

बृज : brij

दोहा• बृज देखो बृज बास को, अरु बृजवासिन रंग बृजरज की पावन  छटा, देख जगत सब दंग कवित्त : 8,8,8,7 वर्णों की चार समतुकांत पँक्तियाँ बृज   धाम    कूँ निहार, जित  प्रेम   मनुहार बाँटों      अपनौउ  प्यार, चलो   यार  बृज में आये  नाथन  के   नाथ, रखौ … Read more »

संकल्प : मनहरण कवित्त/घनाक्षरी

आन बान  शान रख, और  पहचान   इक भारती   का वीर रख, अडिग  जुबान  को काट   डाल रार वाली, खरपतवार      जड़ चूर  कर  डाल गिरि, जैसे  अभिमान  को दीमक  लगी हो जित, उत भी  नजर डाल देश  से  बाहर   कर, देश द्रोही  श्वान  को देश  की  अखंडता के, लिये ये जरूरी यज… Read more »

गर्व से कहो हम ब्राह्मण हैं

जिंदगी के अंत तक,कष्ट के ज्वलन्त तक, रोम रोम मेरा परशुराम गीत गयेगा । विप्र अनुराग मेरा,विप्र मन राग मान, विप्र वंदना में मन,डूबता ही जायेगा । विप्र परिवार मेरा,विप्र व्यवहा... Read more »

घनाक्षरी/ मनहरण कवित छंद

चल     रहे    जिस    पथ , मारग   है नीति   का   वो , आगे अभी बाकी सारा , आपका     ये      जीवन , कोण घडी जाने आवे , संकट   को   लेके साथ , मजबूत     कर    आज , अब     अपना       मन , हार    मत    देख     काम , लगा       रह     अविराम , कर     … Read more »