जिंदगी के अंत तक,कष्ट के ज्वलन्त तक,
रोम रोम मेरा परशुराम गीत गयेगा ।
विप्र अनुराग मेरा,विप्र मन राग मान,
विप्र वंदना में मन,डूबता ही जायेगा ।
विप्र परिवार मेरा,विप्र व्यवहार मेरा,
विप्र हूँ ये सोचकर,अरि घबरायेगा ।
जिंदगी,उत्कर्ष यह,विप्र कुल गौरव की,
जिस दिन मांग लेगा,सहर्ष लुटायेगा ।।
✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
0 Comments
एक टिप्पणी भेजें
If You Like This Post Please Write Us Through Comment Section
यदि आपको यह रचना पसन्द है तो कृपया टिप्पणी अवश्य करें ।