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मत्तगयंद सवैया और अनुप्रास अलंकार का उदहारण

जय महाकाल  मत्तगयंद सवैया और अनुप्रास अलंकार का उदहारण (मत्तगयंद सवैया ) काल कराल कमाल करे, कब भक्त कपालि अकाल सतावै प्रेम, प्रभूति, पराक्रम औ, परिख्याति, परंजय, पौरुष पावै भाव भरी, मनसे, भगती, भय, भूत, भजा, भवभूत मिलावै ध्यान धरौ नित शंकर… Read more »

सवैया : काव्यगोष्ठी

मत्तगयंद सवैया :    भगण×7+गुरु+गुरु   सूरकुटी   पर  भीर भयी, कवि मित्र करें मिल कें कविताई । छन्दन गीतन  प्रीत झरे, उर  भीतर  बेसुधि  प्रीत  जगाई । भाग   बड़े   जब सूरकृपा, चल  सूरकुटी  बृज  आँगन पाई । देख   छटा  बृज पावन की,उर  आज  नवीन गयौ हरसाई । ✍… Read more »

शूर [veer] a solder

छंद : मत्तगयंद सवैया सूर  चलौ    चढ़  सूरन ऊपर, फूलन    हार   लपेट    तिरंगा आँगन  छोड़  बसौ  हद   ऊपर, रोक लिये अरि के सब दंगा जान  लुटा  अपनी  धरती  पर, एकहि  रंग  करौ    पँचरंगा संग भरे कर को  जग आमत,आमत रिक्त लिये तन नंगा - नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष छंद … Read more »

बचपन : मत्तग्यन्द/मालती सवैया

!! बचपन !! [ मत्तग्यन्द/मालती सवैया ] (प्रथम) बालक थे जब मौज रही,मन  चाह  रही  वह पाय रहे थे । खेल लुका छिप खेल रहे,मनमीत   नये   हरषाय  रहे  थे । चोट  नही  तन  पे  मन पे,उस वक़्त खड़े मुस्काय रहे थे । रोक  रहो  कब कौन हमें,सब आपहि प्रीत लुटाय रहे थे । (द… Read more »

मत्तग्यन्द सवैया : चित्र चिंतन

बैठ प्रिया, तटनी  तट पे, यह सोचत है कब साजन आवे । साँझ ढली रजनीश उगो, विरहा  बन  बैरिन मोय सतावे । सूख रही मन प्रेम लता, यह  पर्वत देख  खड़ो मुसकावे । देर हुई उनको अथवा, कछु और घटो यह कौन बतावे । ✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”     श्रोत्… Read more »

मत्तग्यन्द सवैया छंद (mattgyandy savaiya)

मत्तग्यन्द सवैया छंद (Mattgyandy Savaiya)  (1)  देख गरीब मजाक करो नहि,हाल बनो किस कारण जानो मानुष  दौलत  पास   कितेकहु,दौलत  देख  नही  इतरानो ये तन  मानुष को मिलयो,बस एक यही अब धर्म निभानो नेह सुधा  बरसा  धरती पर,सीख  सिखा  सबको  हरषानो … Read more »

एक सुंदरी : श्रृंगार रस

छंद : मत्तग्यन्द सवैया ------------------------------- जोगिन एक मिली जिसने चित, चैन चुराय  लिया चुप  मेरा । नैन  बसी  वह   नित्य  सतावत, सोमत  जागत डारिहु  घेरा । धाम कहाँ उसका  नहिं  जानत, ग्राम, पुरा, ... Read more »