सवैया : काव्यगोष्ठी Author:नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” 8/02/2018 01:05:00 pm मत्तगयंद सवैया : भगण×7+गुरु+गुरु सूरकुटी पर भीर भयी, कवि मित्र करें मिल कें कविताई । छन्दन गीतन प्रीत झरे, उर भीतर बेसुधि प्रीत जगाई । भाग बड़े जब सूरकृपा, चल सूरकुटी बृज आँगन पाई । देख छटा बृज पावन की,उर आज नवीन गयौ हरसाई । ✍नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष श्रोत्रिय निवास बयाना Mattgyand savaiya : story mirror reward
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