जनक सुता माँ जानकी,अरु दशरत सुत राम । श्री चरणों मे आपके,मेरा नमन प्रणाम ।। - उत्कर्ष अज्ञानी ठहरा प्रभो,नहीं तनिक भी ज्ञान । क्षमा करो मम भूल हे,पवन पुत्र हनुमान ।। - उत्कर्ष ज्ञान दायनी भगवती,रखो कलम का मान । तुरत संभालो काज म… Read more »
जनक सुता माँ जानकी,अरु दशरत सुत राम । श्री चरणों मे आपके,मेरा नमन प्रणाम ।। - उत्कर्ष अज्ञानी ठहरा प्रभो,नहीं तनिक भी ज्ञान । क्षमा करो मम भूल हे,पवन पुत्र हनुमान ।। - उत्कर्ष ज्ञान दायनी भगवती,रखो कलम का मान । तुरत संभालो काज म… Read more »
===== उत्कर्ष कृत दोहे ==== गजमुख की कर वंदना,धर शारद का ध्यान । पञ्च देव सुमिरन करूँ,रखो कलम का मान ।। ==============≠==== ईश्वर के आशीष से,दूने हो दिन रात । बिन मांगे सबको मिले,मेरी यही सौग... Read more »
भोर भयी दिनकर चढ़ आया । दूर हुआ तम का अब साया ।। कर्मवीर तुम अब तो जागो । लक्ष्य साध यह आलस त्यागो ।। हार जीत सब कर्म दिलाता । ध्यान धरे वह मंजिल पाता ।। हार कभी न कर्... Read more »
उसका निखरा रूप था,नागिन सम थे बाल । घायल करती जा रही,चल मतवाली चाल ।। चन्द्र बदन कटि कामनी,अधर एकदम लाल । नयन कटारी संग ले,करने लगी हलाल ।। जबसे देखा है तुझे,पाया क... Read more »
प्रेम हृदय में धारिये,प्रेम रत्न यह ख़ास । जहाँ प्रेम का वास है,वही प्रभो का वास ।। ब्रह्मदेव के पुत्र है,ब्रह्म बना आधार । परशुराम सम तेज है,यह ब्राह्मण का सा... Read more »
उसका निखरा रूप था , नागिन जैसे बाल । घायल करती जा रही , चल मतवाली चाल ।। चन्द्र बदन कटि कामनी , अधर बिम्ब सम लाल । नयन कटारी संग ले , करने लगी हलाल ।। जबसे देखा है तुझे , पाया कहीं न चै… Read more »
_राजस्थानी ढोला और उसकी परदेशी प्रियतमा के बीच का वार्तालाप_ साजन तेरे देश की,है कैसी यह रीत । जित देखूँ में झांक कें,उते मिले बस प्रीत ।। सजनी मरुधर देश ये,है वीरो की खान । आपस में मिल जुल रहें,यहाँ राम रहमान ।। साजन तेरे देश के,अलग थलग क्यों रंग ।… Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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