_राजस्थानी ढोला और उसकी परदेशी प्रियतमा के बीच का वार्तालाप_
साजन तेरे देश की,है कैसी यह रीत ।
जित देखूँ में झांक कें,उते मिले बस प्रीत ।।

सजनी मरुधर देश ये,है वीरो की खान ।
आपस में मिल जुल रहें,यहाँ राम रहमान ।।

साजन तेरे देश के,अलग थलग क्यों रंग ।
कहीँ बजत क्यों दुंदुभी,कहीँ बजत क्यों चंग ।।

सजनी मेरा देश ये,सबका मन ललचाय ।
बुरी नजर को दुंदुभी,प्रीत चंग बतलाय ।।

साजन तेरे देश में,और बता क्या ख़ास ।
प्यार बढ़े जिससे यहां,बुझे हृदय की प्यास ।।

सजनी मेरे देश में,सबका आदर, मान ।
मूल्य यहां है बोल का,भले जाय फिर जान ।।

साजन तेरे देश में,दूर दूर तक धोर ।
तब कैसे होवे कहो,यहां सुहानी भोर ।।

सजनी मेरे देश में,चातक, कुंजा, मोर |
मधुर गान इनका करे,यहां सुहानी भोर ।।

साजन तेरे देश में,नित्य तीज त्यौहार ।
कारण का इनको बता,पूछे मन लाचार ।।

सजनी मेरे देश में,सर्व धर्म समभाव ।
मेल जोल इनसे बढ़े,मिटे हृदय के घाव ।।
.........To be Countinue.

✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
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