प्रेम हृदय में  धारिये,प्रेम  रत्न  यह  ख़ास ।
जहाँ प्रेम का वास है,वही  प्रभो  का वास ।।

ब्रह्मदेव   के   पुत्र  है,ब्रह्म    बना   आधार ।
परशुराम सम तेज है,यह ब्राह्मण का सार ।।

राजपूत राजा बने,मिला  दिव्य  जब ज्ञान ।
मैं ब्रह्मा का पुत्र हूँ,अब  तो  मुझको जान ।।

कान्हा  तेरा  नाम  सुन,मन में  नाचे  मोर ।
तेरे  सुमिरन  मात्र  से,होय  सुहानी  भोर ।।

राम राम का  राम  है,राम  जगत  आधार ।
राम नाम के जाप से,हो   जाता भव पार ।।

राम रमा हर जीव में,राम  नही  बस  राम ।
राम राम अनुपात में,करो राम सम काम ।।

मोहजाल में क्यों फँसा,नश्वर  जीवन  जान ।
अंत बड़ा नजदीक है,कर हरि का गुणगान ।।

काया कंचन सी लगे,देती मन ललचाय ।
क्यों  भूले  उद्देश्य तू,रही तुझे  भरमाय ।।

कंचन   निखरे   ताप  में,ज्यो ज्यो तपता जाय ।
मन भी कंचन सा समझ,निखर  खेद  से  पाय ।।

पाठक  वो  ही  चाहता,जैसी  उसकी  सोच ।
लिखना अपना कर्म फिर,सच में क्यों संकोच ।।

युवा वर्ग से है अगर,चाहेगा        श्रृंगार ।
ढलती वाला यूँ कहे,जपो सभी करतार ।।

ओज वही बस चाहता,जिसका खौला  खून ।
तपकर वो भभकी भरे,जैसे    तपकर   जून ।।

सभी रसो का रसिक वह,जिसके अंदर भाव ।
सब रस  है अपनी जगह,पढे स्वयं  ले  चाव ।।

अहम यहां जिनको हुआ,भुगतेंगे     परिणाम ।
अहम बुध्दि  का  रोग  है,करे पतन का काम ।।

प्रेम रहा नहि प्रेम अब,प्रेम  बना  व्यापार |
प्रेम अगर वह प्रेम  हो,प्रेम  करे  भवपार ||

प्रेम संग पेशा मिला,हुआ बाद फिर प्यार |
प्यार प्यार कर ठग रहे,अब सारे नर नार ||

प्रेम दिलो का मेल है,समझो नहि व्यापार |
प्रेम करो दिल से सभी,रहे न बाद विकार ||

लाभ हानि को देखकर,करें  यहां जो प्यार |
प्रेम  नही  सब जान लो,करते वह व्यापार ||

आप  सतत   करते  रहें,दोहों का अभ्यास ।
भाव भरे फिर शिल्प ले,ऐसा  करें  प्रयास ।।

भाव  सभी  में  है भरे,भावो से गठबंध ।
भाव सदा भावुक करें,भाव बने आनंद ।।

भाव नही जिसके हृदय,पत्थर  मूरत  मान ।
भाव   मूल   इंसान  की,भाव बने पहचान ।।

जीवन के इस दौर के,अलग अनूठे रंग ।
प्रेम  भाव  के संग में,उड़ती  रहे पतंग ।।

धागा मांझा बन जियें,जीतें जीवन जंग ।
स्वप्नों  के आकाश में,उड़ती  रहे  पतंग ।।

सदा   प्रेम   ऐसा    करें,इक दूजे  का    संग ।
जीवन  रूपी  व्योम  में,उड़ती    रहे    पतंग ।।

धातु योग “रम” का हुआ,पाया तब  ये  नाम ।
कण कण में जो व्याप्त है,वही एक बस राम ।।

“राम” राम का राम है,दशरत सुत मत जान ।
राम रमा हर जीव  में,वही   राम  लो  मान ।।

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