उसका  निखरा रूप  था,नागिन    जैसे    बाल
घायल  करती  जा  रही,चल   मतवाली   चाल ।।

चन्द्र बदन कटि कामनी,अधर बिम्ब सम लाल
नयन   कटारी   संग  ले,करने    लगी   हलाल ।।

जबसे   देखा   है    तुझे,पाया   कहीं     चैन
प्रेम   रोग    ऐसा  लगा,नित  बरसत   है  नैन ।।

प्रीतम  से होगा मिलन,आस  भरे  दो  नैन
स्वपन सलोने बुन रही,देखो  फिर  से रैन ।।

विरह पीर तुम जान लो,  रांझे  की हीर
तडप रहा मैं  नित यहां,बहे नयन से  नीर ।।

सात जन्म तक चाहता,क्या तुम दोगी साथ
उसने ये सुन  रख दिया,फिर हाथो में  हाथ ।।

सजनी से होगा मिलन,कहे  यही  दो  नैन
खुशियों को ओढ़े  हुये,अब   आएगी  रैन ।।

नवीन श्रोत्रिय "उत्कर्ष"
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