मैं हिन्दू हूँ ! तुम भी तो हिन्दू हो
मैं हिन्दू हूँ ! तुम भी तो हिन्दू हो ,
तुम्हारी मेरी सोच का ,
फिर क्यों न एक बिंदु हो,
इस ज़माने में मैं भी तो रहता हूँ,
अपने धर्म का मैं भी तो पालन करता हूँ,
तुम करके जीव रक्षा, इंसान सिद्द हो।
तुम्हारी मेरी सोच का ,
फिर क्यों न एक बिंदु हो,
फैला दो तुम यश अपना,
उस तम के पार तक,
लहरा दो ध्वज कीर्ति,
तुम जगत जीव सार तक,
लड़ते रहो तुम,
अपनी अंतिम साँस तक,
बढ़ा लो तुम जोश,
अपने हरेक वार तक,
खाओ कसम तुम,
विश्व विजयमान की,
शान न जाने पाये,
अपने प्यारे हिन्दुस्तान की,
करो तुम रक्षा,लगा बाज़ी अपनी जान की,
हे ! हिन्दू पुत्र तू वीर है,
ये बात अभिमान की,
झुकना न सीखा तुमने,
चाहे शीश कटाना पड़े,
दूसरे का छीनना नहीं,
चाहे अपना घटना पड़े,डरता नहीं तू,
चाहे दुश्मन इर्द-गिर्द हो,
खुशियों का उमड़े सैलाब,
आँखों के ख़ुशी का इंदु हो,
तुम्हारी मेरी सोच का,
फिर क्यों न एक बिंदु हो,
मैं हिन्दू हूँ ! तुम भी तो हिन्दू हो
नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
श्रोत्रिय निवास बयाना
फिर क्यों न एक बिंदु हो,
इस ज़माने में मैं भी तो रहता हूँ,
अपने धर्म का मैं भी तो पालन करता हूँ,
तुम करके जीव रक्षा, इंसान सिद्द हो।
तुम्हारी मेरी सोच का ,
फिर क्यों न एक बिंदु हो,
फैला दो तुम यश अपना,
उस तम के पार तक,
लहरा दो ध्वज कीर्ति,
तुम जगत जीव सार तक,
लड़ते रहो तुम,
अपनी अंतिम साँस तक,
बढ़ा लो तुम जोश,
अपने हरेक वार तक,
खाओ कसम तुम,
विश्व विजयमान की,
शान न जाने पाये,
अपने प्यारे हिन्दुस्तान की,
करो तुम रक्षा,लगा बाज़ी अपनी जान की,
हे ! हिन्दू पुत्र तू वीर है,
ये बात अभिमान की,
झुकना न सीखा तुमने,
चाहे शीश कटाना पड़े,
दूसरे का छीनना नहीं,
चाहे अपना घटना पड़े,डरता नहीं तू,
चाहे दुश्मन इर्द-गिर्द हो,
खुशियों का उमड़े सैलाब,
आँखों के ख़ुशी का इंदु हो,
तुम्हारी मेरी सोच का,
फिर क्यों न एक बिंदु हो,
मैं हिन्दू हूँ ! तुम भी तो हिन्दू हो
नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
श्रोत्रिय निवास बयाना
0 Comments
एक टिप्पणी भेजें
If You Like This Post Please Write Us Through Comment Section
यदि आपको यह रचना पसन्द है तो कृपया टिप्पणी अवश्य करें ।