उत्कर्ष सवैया : 2 Author:नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” 1/31/2017 11:18:00 pm मत्तग्यन्द सवैया चोर बसे चहुँ ओर बसे,पर नाम करें रचना कर चोरी । सूरत से वह साधक है,पहचान परे नहि सूरत भोरी । बात बने लिखते वह तो,मति मारि गयी बिनकीउ निगोरी । कोशिश ते तर जामत है,मति कोउ उन्हें यह दे फिर थोरी । नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” श्रोत्रिय निवास बयाना +91 84 4008-4006
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