छंद : असंबधा

(asambandha chhand)

(1)
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कान्हा  आओ  प्रेम अगन मन लागी है
चाहे    तेरा    दर्शन   अब   अनुरागी  है
प्रेमी हूँ तेरा  सुन, तुझ   बिन  मेरा  ना 
तारो  प्यारे  मोहन गिरधर हे !  कान्हा
(2)
✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
 श्रोत्रिय निवास बयाना
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!! जहाँ हर दिन प्रेम बयार बहे,वह हिंदुस्तान हमारा है !!