अज्ञानी  बिन आपके,ज्यो जल बिन हो मीन ।
कृपा करो माँ शारदे,विनती   करे     नवीन ।।
विनती करे  नवीन,सूझ कब तुम बिन माता ।
दो  मेधा  का  दान,मात   मेधा    की   दाता ।
जग करता गुणगान,मात तुम आदि भवानी ।
मिले तुम्हारा  साथ,चाहता    यह   अज्ञानी ।।

✍🏻नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
     श्रोत्रिय निवास बयाना