छंद : मत्तग्यन्द सवैया
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नैनन ते मद बाण चला,
मन भेद गयी इक नारि निगोरी ।
राज किया जिसने दिल पे,
वह सूरत से लगती बहु भोरी ।
चैन गयो फिर खोय कहीँ,
सुधि बाद रही हमकूँ कब थोरी ।
प्रेम करो हमने जिससे,
मन मेल हुओ वह चाँद चकोरी ।।
नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना
+91 84 4008-4006
2 Comments
Nice line Dear Friend.
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार जी
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