पीले  हाथ  किये  बाबुल  ने,अपनी  बेटी  ब्याही है ।
अब तक तो कहलाई अपनी,अब वो हुई परायी है ।।
नीर  झलकता है  पलको से,बेला  करुणा  की आयी ।
चली सासरे वह निज घर से,दुख की बदली है छायी ।।
मात-पिता,बहिना अरु भाई,फूट - फूट  कर  रोते है ।
अपनी   प्यारी    लाडो   से,दूर  सभी  जब  होते है ।।
ख़ुशी  ख़ुशी  सब  रिश्ते जुड़ते,बुने प्रेम के धागों से ।
सदा  ख़ुशी  ही  लेकर  आई,बेटी  अपने  भागो से ।।
नीर भरी अँखियों से बाबुल,कहते सुनो  जमाई जी |
मैंने     मेरी   दौलत    सारी,तुमको  है  समराई जी ||
यही  दिवाली  यही  दूज  है,यही  प्रेम  की होली है ।
भूल  चूक  पर  ध्यान  न देना,मेरी  लाडो भोली है ।।
नही चाहिये इसको कुछ भी,थोड़ा प्यार जताना है ।
बेटी   खुद  कमला है  होती,यही मुझे समझाना है ।।
चेत   करो  सोये  श्रोताओं , बाद  बड़े पछताओगे ।
बेटी का सम्मान सीख लो,तब आगे बढ़   पाओगे ।।
     ✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
        श्रोत्रिय निवास बयाना
          भरतपुर (राजस्थान)
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