प्रमिताक्षरा छंद

विधान :
सगण,जगण,सगण,सगण=12

(१)
पहचान ध्येय, पथ,जीवन,को
उस ओर मोड़ फिर तू मन को
तज लोभ,द्वेष अरु मोह सभी
भव  ताल   पार  उतरे तब ही

 (२)
यह  मोह मित्र  सबको छलता
फँस  मोहजाल,जीवन जलता
कर जाप नित्य मन मोहन का
यह सार  एक  इस जीवन का

 ✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
   श्रोत्रिय निवास बयाना
उत्कर्ष कवितावली
प्रमिताक्षरा छंद विधान