बन आज़ाद परिंदा आज उड़ना चाह रहा है मेरा मन बन आज़ाद परिंदा आज उड़ना चाह रहा है मेरा मन उडूं वहां तक, जहाँ तलाक हो, कल्पनाओ का गगन बन आज़ाद परिंदा आज उड़ना चाह रहा है मेरा मन बंद आँखों से देखे बहुत, देखे नींदों में सुन्दर स्वप्न खुली आँखों स… Read more »
बन आज़ाद परिंदा आज उड़ना चाह रहा है मेरा मन बन आज़ाद परिंदा आज उड़ना चाह रहा है मेरा मन उडूं वहां तक, जहाँ तलाक हो, कल्पनाओ का गगन बन आज़ाद परिंदा आज उड़ना चाह रहा है मेरा मन बंद आँखों से देखे बहुत, देखे नींदों में सुन्दर स्वप्न खुली आँखों स… Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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