स्वाभिमान |
स्वाभिमान : SWABHIMAN
कोई तो है जो मेरे देश का संगीत गुनगुनाता है,
कोई तो है जो मुझे अपना सा नजर आता है ,
कोई तो है जो मुझे महापुरषो का इतिहास याद दिलाता है,
कोई तो है जो स्वाभिमान जगाता है,
न देश है ये अकबर-बाबर का,
चलो कोई तो है अपना, जो अपना सा नजर आता है,
न किसी मुस्लिम (मोहम्मद) ने बनाया है,
ये देश राम कृष्ण का , ये देश हिन्दू का जाया है,
यहाँ सबने प्रेम बरसाया है,
ये देश है मेरे अपनों का,
हम झुकते नहीं तूफ़ान में भी,
हम सूर-वीरो की भूमि से,
जहाँ वीरों को जन्मा जाता है ,
हम शांत खड़े तो नहीं है कायर,
न डरे तेरे इस आतंक से हम,
फिर तूने जबाव करारा ही पाया है ,
जितनी आवाज़ तेरी इन हुंकारों में है,
तू संभल जा, ओ आतंक के मसीहा,
अपना कोई न बाल-बांका कर पाया है,
ये देश अपनों ने बसाया है,
यहाँ हर तरफ प्रेम की धारा बहती,
न डरते हम इन हुंकारों से,
चाहे आंधी ने कहर बरसाया है,
उतना शोर, आतंक यहाँ बच्चे ने बचपन में मचाया है,
बस शांत खड़े है तेरी समझ तक हम,
ये लिखा मैंने सब कुछ, उससे जुड़कर,
जिसने देश भाव बरसाया है,
चलो कोई तो है अपना, जो अपना सा नजर आता है,
नवीन श्रोत्रिय
SHROTRIYA MANSION BAYANA
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