उत्कर्ष जुगलबंदी
तुम्हारा देखकर चेहरा, हमें तो प्यार आता है
तुम्हारे हाथ का खाना, सदा मुझको लुभाता है
बसे हो आप ही दिल मे, बने हो प्राण इस तन के
तुम्हारी आँख का काजल, मगर हमको जलाता है
तुम्हारी बात पर सजना, हमें तो प्यार आता है
तुम्हारा प्यार अब हल पल, हमें पागल बनाता है
हमारा रूप तन मन सब, तुम्हारे ही लिये तो हैं
बसे हो आँख में तुम ही, जिसे काजल छुपाता है
Deepti Aggarwal
सुनो!अब छोड़ भी देना, प्रिया काजल लगाना तुम
चली आओ हकीकत में, नहीं फिर से सताना तुम
तुम्हारे ही लिये तो इक, लिखें है गीत और गजलें
किया सच प्रेम है तुमसे, नहीं समझो बहाना तुम
किया विश्वास तुमपर है, नहीं समझा बहाना है
तुम्हीं को चाहती हूँ मैं, तुम्हे अपना बनाना है
तुम्हारी राह तकती हूँ, चले आओ मुझे लेने
वरण मेरा सजन करलो,अगर काजल चुराना है
Deepti Aggarwal जी
चुराना है अगर कुछ तो, तुम्हें तुम से चुराऊँगा
करूँगा प्यार भी इतना, नयन भर मैं ही छाऊँगा
नहीं होगी जरूरत फिर, तुम्हें हमको छुपाने की
रहा हूँ एक मैं तेरा, यही सबको बताऊँगा
बसे तुम इस क़दर मुझमें, कहीं मैं ही नहीं हूँ अब
चुराओगे भला कैसे, तुम्हीं तुम तो बचे हो जब
बता दो ना जरा सबको, तुम्हारी हो चुकी हूँ मैं
करोगे प्यार मन भर के, कि होगी शुभ घड़ी वो कब
Deepti Aggarwal जी
क्रमशः जारी शेष अगले अंक में,
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UTKARSHDEEP JUGALBANDI |
Utkarsh Deep Jugalbandi |
Utkarsh Deep Jugalbandi |
8 Comments
behad sunder v ruchikr jugalbndi.aapke sath likhna mere liye samman ki baat hai.
जवाब देंहटाएंदीप्ति अग्रवाल दीप जी, मुझे गर्व है कि चंद दिनों में आपका लेखन उत्कृष्ट स्तर तक पहुँच गया, आपकी सृजन साधना अद्भुत है ।
हटाएंbest... jugalbandi
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार जी
हटाएंGazab
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार जी
हटाएंNice
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
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