तांटक छंद : Tantak Chhand
चोरी छिपकर वार किया है,
जिन नापाकी श्वानों ने ।
कभी न उनको सबक सिखाया,
गाँधीवादी गानों ने ।
मार्ग अहिंसा का अपनाना,
कलयुग में कायरता है ।
जो इसको अपनाता है वह,
कायर जैसे मरता है ।
कितनी कोख उजाड़ी अरि ने,
कितनों का सिंदूर मिटा ।
हिन्द बसंती बागानों का,
नित्य नित्य सौंदर्य घटा ।
मगर नहीं है लज्जा आई,
गूँगी बहरी खादी को ।
कोई ऐसा जतन करे जो,
रोक सके बर्बादी को ।
डूब शर्म और पश्च्याताप में,
थोड़े भी जो कदम बढ़े ।
उन्हें रोकने, घर भीतर के,
द्रोही अरु गद्दार खड़े ।
घात लगाकर गीदड़ बैठा,
नहीं जाल में फँसना है
बहुत हुआ धीरज को धरना
अब करना, जो करना है
नहीं चाहिये हमें और कुछ,
बाहर सब गद्दार करो ।
शत्रु को शक्ति दिखलाओ अरु,
उनका अब संहार करो ।
: क्रमशः.....
- नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
बदला लो |
10 Comments
मन के आवेग कागजों पर तैरने लगे हैं । शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 18/02/2019 की बुलेटिन, " एयरमेल हुआ १०८ साल का - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंवाह! वाह!! और सिर्फ वाह!!!
जवाब देंहटाएंजी सराहना व अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ाने के लिये हार्दिक आभार
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंAABHAR AADRNIYA
हटाएंEk dam jabardast
जवाब देंहटाएंसराहना के लिये हार्दिक आभार आदरणीय
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