बसन्त (नई कविता)
छाई दिल में उमंग,मन हुआ है प्रसन्न
सब झूम रहे है,आया झूम के ये बसंत
चारो तरफ हरियाली है, रुत ये खुशियों वाली है
सब के चेहरे खिले हुए है, छाई होटों पे खुशहाली है
हुआ पूर्ण समय ज्वलंत, हुआ सब कष्टो का अंत
सबके चित हुए है प्रसन्न,देखो आया झूम के बसंत
मात शारदे का करो मिल सब वंदन
गाओ श्रध्दा गीत,सबकरो अभिनंदन
माई की कृपा से,खुश हो सबके सदन
दूर हो जाए सबका , अज्ञान का तम
आया रे आया , देखो झूम के बसंत
आया रे आया,देखो ऋतुराज बसंत
नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
श्रोत्रिय निवास बयाना
Utkarsh Kavitawali |
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