MUKTAK
चलाये बाण नैनों के, बना उनका निशाना दिल
चढ़ी फिर आशिकी हमपे, लगें उजड़ी सभी महफ़िल
नहीं है और कुछ चाहत, बने वो ही में'री दुल्हन
बने वो ही दुल्हन मेरी,रही जो आज की कातिल
तुम्हारी आरजू गर ये, तुम्हे अपना बना लूँगा
नजर में एक तुम होंगी, नयन में यूँ बसा लूँगा
नहीं मालूम ये सजनी, किसी की चाह थी कितनी
मगर इतना समझ लेना, पलक पर मैं बिठा लूँगा
तुम्हारी आरजू गर ये, तुम्हे अपना बना लूँगा
नजर में एक तुम होंगी, नयन में यूँ बसा लूँगा
नहीं मालूम ये सजनी, किसी की चाह थी कितनी
मगर इतना समझ लेना, पलक पर मैं बिठा लूँगा
चलों करलें प्रिया परिणय, जुदाई को न सहना है
वचन ले सात जन्मों का, हमें अब साथ रहना है
वरण जग रीति से करके, मिलन होगा हमारा तब
बने हम एक दूजे को, जमाने से ये कहना है
करो हरि का भजन तुम नित्य मेरे साथ में यारो
भले हम हों अँधेरे में,मगर औरों को मिल तारो
नहीं है उम्र कोई राधिका माधव को जपने की
जपा मेरी तरह जो पाओगे, जसलीन सी पारो
वचन ले सात जन्मों का, हमें अब साथ रहना है
वरण जग रीति से करके, मिलन होगा हमारा तब
बने हम एक दूजे को, जमाने से ये कहना है
करो हरि का भजन तुम नित्य मेरे साथ में यारो
भले हम हों अँधेरे में,मगर औरों को मिल तारो
नहीं है उम्र कोई राधिका माधव को जपने की
जपा मेरी तरह जो पाओगे, जसलीन सी पारो
बिना विचारे कर्म करें जो, वह पीछे पछताते हैं
ऐसा मैंने कहा नहीं पर, ऐसा सभी बताते हैं
धीरज धारण करने की भी, तो कुछ सीमा होती है
इस धीरज की आड़ लिये, वे केवल समय गँवाते है
कर्म करोगे तो निश्चित ही, फल को तुम पा जाओगे
बिना कर्म के बोलो कैसे, तुम अधिकार जताओगे
कर्म बड़ा है सदा भाग्य से, मन में इतना भर लेना
मनचाही मंजिल तुम मित्रो, एक इसी से वर लेना
कोई शिकवा शिकायत हो,खबर इसकी हमें करना
हमें मालूम कब उलझन,मगर पर पीर को हरना
रहेगा वक्त न ऐसा,छटेंगे दुःख के ये बादल
समुंदर जो ये यादों का,नही तुम देखकर डरना
रहा ये पल बड़ा दुर्लभ, रहा बचपन बड़ा प्यारा
नहीं शिकवे गिले कोई, नहीं मन हार से हारा
कहाँ डर है बसा उर में, कहाँ मनलोभ पनपा है
मिले है मीत मन से मन,मिले है प्यार से यारा
लिखूँ क्या गीत गजलें छंद जब मनमीत रूठा हो
कहाँ आराम नैनो को जहाँ हर स्वप्न झूठा हो
सदा दिल जोड़ने में ही उमर अपनी बिताई है
कहो कैसे सहेगा दिल किसी को जोड़ टूटा हो
हम टूट से गये सजना आप जोड़िये
यूँ बेवजह कभी हम से मुँह न मोड़िये
इन दूरियाँ को खत्म करो भूल मानकर
जो कल गुजर गया उसको आज छोड़िये
कभी मेरी तुमसे मुलाकात होगी
नैन से नैनों की अगर बात होगी
फिजा महक उठेंगी उस दिन सावन सी
प्रेम से प्रेम की तब बरसात होगी
मुक्तक [बह्र : 221 212 2,2 212 122]
है इश्क नाम क्या ये,बिन बूझ ठँस गए हैं
हो दर्द लाख हमको, हम देख हँस गए है
लेकर हमें कहाँ से, देखो कहाँ है' लाई
कर प्रेम बेवफा से, हम यार फँस गए है
देखकर झूठ को सत्य झुकने लगा
है सही क्या गलत सार छुपने लगा
धन जगत की निगाहों में' रम सा गया
बाद रिश्तों का दम आप घुटने लगा
जहाँ पर प्रीत बसती है, जहाँ सद्भाव धारा है
जहाँ अपनत्व कण कण में,जहाँ सबको सहारा है
जहाँ पर शूर है जन्मे, जहाँ की रज भभूती है
जगत में पूज्य, जगप्रिय,वतन भारत हमारा है
ऐसा मैंने कहा नहीं पर, ऐसा सभी बताते हैं
धीरज धारण करने की भी, तो कुछ सीमा होती है
इस धीरज की आड़ लिये, वे केवल समय गँवाते है
कर्म करोगे तो निश्चित ही, फल को तुम पा जाओगे
बिना कर्म के बोलो कैसे, तुम अधिकार जताओगे
कर्म बड़ा है सदा भाग्य से, मन में इतना भर लेना
मनचाही मंजिल तुम मित्रो, एक इसी से वर लेना
कोई शिकवा शिकायत हो,खबर इसकी हमें करना
हमें मालूम कब उलझन,मगर पर पीर को हरना
रहेगा वक्त न ऐसा,छटेंगे दुःख के ये बादल
समुंदर जो ये यादों का,नही तुम देखकर डरना
रहा ये पल बड़ा दुर्लभ, रहा बचपन बड़ा प्यारा
नहीं शिकवे गिले कोई, नहीं मन हार से हारा
कहाँ डर है बसा उर में, कहाँ मनलोभ पनपा है
मिले है मीत मन से मन,मिले है प्यार से यारा
लिखूँ क्या गीत गजलें छंद जब मनमीत रूठा हो
कहाँ आराम नैनो को जहाँ हर स्वप्न झूठा हो
सदा दिल जोड़ने में ही उमर अपनी बिताई है
कहो कैसे सहेगा दिल किसी को जोड़ टूटा हो
हम टूट से गये सजना आप जोड़िये
यूँ बेवजह कभी हम से मुँह न मोड़िये
इन दूरियाँ को खत्म करो भूल मानकर
जो कल गुजर गया उसको आज छोड़िये
कभी मेरी तुमसे मुलाकात होगी
नैन से नैनों की अगर बात होगी
फिजा महक उठेंगी उस दिन सावन सी
प्रेम से प्रेम की तब बरसात होगी
मुक्तक [बह्र : 221 212 2,2 212 122]
है इश्क नाम क्या ये,बिन बूझ ठँस गए हैं
हो दर्द लाख हमको, हम देख हँस गए है
लेकर हमें कहाँ से, देखो कहाँ है' लाई
कर प्रेम बेवफा से, हम यार फँस गए है
देखकर झूठ को सत्य झुकने लगा
है सही क्या गलत सार छुपने लगा
धन जगत की निगाहों में' रम सा गया
बाद रिश्तों का दम आप घुटने लगा
जहाँ पर प्रीत बसती है, जहाँ सद्भाव धारा है
जहाँ अपनत्व कण कण में,जहाँ सबको सहारा है
जहाँ पर शूर है जन्मे, जहाँ की रज भभूती है
जगत में पूज्य, जगप्रिय,वतन भारत हमारा है
पिता पाटन सदा गृह के,प्रसू आधार है मित्रो
सुता गृह मान बेटा वंश का उजियार है मित्रो
बने दीवाल रिश्तों की,हुआ निर्माण तब घर का
जहाँ हो मेल इन सबका,वही परिवार है मित्रो
लबों को चूमकर तेरे, लुटा दूँ प्रीत मैं अपनी
बनाकर हमसफ़र अपना, दिखा दूँ जीत मैं अपनी
नहीं है खेल ये कोई, मुहब्बत की फतह है ये
दिवानों को दिखा दूँगा, दिवानी रीत मैं अपनी
- नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
0 Comments
एक टिप्पणी भेजें
If You Like This Post Please Write Us Through Comment Section
यदि आपको यह रचना पसन्द है तो कृपया टिप्पणी अवश्य करें ।