छंद : असंबधा (asambandha chhand) (1) ---------------------- कान्हा आओ प्रेम अगन मन लागी है चाहे तेरा दर्शन अब अनुरागी है प्रेमी हूँ तेरा सुन, तुझ बिन मेरा ना तारो प्यारे मोहन गिरधर हे ! कान्हा (2) ✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” … Read more »
छंद : असंबधा (asambandha chhand) (1) ---------------------- कान्हा आओ प्रेम अगन मन लागी है चाहे तेरा दर्शन अब अनुरागी है प्रेमी हूँ तेरा सुन, तुझ बिन मेरा ना तारो प्यारे मोहन गिरधर हे ! कान्हा (2) ✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” … Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
अधिक जाने.... →
Follow Us
Stay updated via social channels