अपनी किस्मत आप ही,लिख  सकते  श्रीमान
परिश्रम से  सम्भव यही,भाग्य  विधाता जान ।।

कमला,   गौरी,शारदे,जगदम्बा   के    रूप
महिमा अथाह है मात की,कहते ऋषि मुनि वेद ।।

वेद  शास्त्र  ग्रन्थ का,रावण को  था ज्ञान
पतन अहम वश ही हुआ,इतना लो सब जान ।।

रावण  सम   ज्ञानी  नही,   कोउ   भ्राता  आज
केवल  बहिना  के  लिये,गवाँ   दिया  सब  राज ।।

रावण पुतला फूँक कर,हर्षित  सब  ही लोग
पर रावण  भीतर लिये,करते नित ही भोग ।।

कागज  पुतला  फूँक कर,खुश  होते  सब   लोग
असली रावण  मन   बसा,अहम -वहम बन  रोग ।।

इक दूजे को कब तलक,दोगे  तुम  अब  दोष
पश्चिमता  की   ब्यार  मे,भूल चले  क्यों होश ।।

कवियों का संसार ये,भारत भूमि महान
भूल चले परिवेश को,यह कैसा है ज्ञान ।।

अपनी  अपनी सोच है,अपने सुघड़ विचार
अपनों से मिलकर बने,अपना ये   संसार ।।

कवियों का संसार ये,भारत भूमि महान
भूल चले परिवेश को,यह कैसा है ज्ञान ।।

अपनी  अपनी सोच है,अपने सुघड़ विचार
अपनों से मिलकर बने,अपना ये   संसार ।।

शारद   के   भंडार  से,कर लो थोड़ा दान
निश दिन   दूनो ये बढ़े,मिटे  साथ अज्ञान ।।

ज्ञान   बाँटने   से    बढ़े,कहे यही सब बात
मिट जाए अँधियार गर,हो  पूनम की रात ।।

मूरख को भी दीजिये,विद्या  का  तुम दान
मूरख नहि मूरख  रहे,हो उसका कल्याण ।।

गद्य - पद्य  छोडो  नही,करो नही मतभेद
हिंदी   के  दो  रत्न  ये,मानो  ज्यो  गोमेद ।।