मेरे विचार : धर्म

धर्म का शाब्दिक अर्थ तक नही जानते लोग,और स्वयं को धर्म अनुयायी कहते है ।

धारण करने योग्य सभी तत्व चाहे वह विचार,गुण,कर्म,व्यवहार,जो उद्देश्य,व जीवन का सच्चा अर्थ साकार करते है , एवं उन सिध्दांतों पर चलकर जीवन को श्रेष्ठता की प्राप्ति होती है । धर्म कहलाता है ।
सत्यता.....

1. शैतानो का कोई मजहब नही होता,परंतु अधिकांशतः शैतान  केवल मुस्लिम धर्म को मानने वाले ही होते है ।

2. मुस्लिम अपने जीवन पर्यन्त ईमान पर बना रहता है परंतु सबसे ज्यादा विश्वासघाती भी इसी धर्म को मानने वाले थे ।

3. हिन्दु बाहुल्य क्षेत्र में अकेला मुस्लिम बड़े ही आराम से रह सकता है,परंतु वहीं इसके विपरीत हिन्दू को बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है ।

4. मुस्लिम केवल मुस्लिम को ज्यादा महत्व देता है जबकि हिन्दू ऐसा नही करता ।

आत्ममंथन :

मनुष्य/इंसान की इस देह/शरीर को प्राप्त कर जानवरो जैसा बर्ताब करना धर्म नही अधर्म होता है ।
फिर चाहे आप पीर,फकीर हो या फिर साधु,
मनुष्यता को प्राप्त करने वाला सामान्य नही होता,उसे बहुत जतन/प्रयास के बाद यह प्राप्त होती है,अतः आप सभी इस कथन पर विचार करे,आत्ममंथन करें ।
और एक बात अगर आपको कभी भी कोई फैसला/निर्णय लेने में असहजता/परेशानी हो तब आप
स्वयं को उस स्थान पर रखें, जिसके बारे में आपको निर्णय लेना है ।
तब आपसे न तो कोई गलती होगी,और न ही धर्म से परे आप जा पाओगे ।

: नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष