जै ले रे गोपाल कन्हाई Author:नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” 4/20/2020 11:36:00 pm जैं लै रे गोपाल कन्हाई दाल चूरमा, माखन मिसरी, नहीं दूध दधि लाई रूखी सूखी, गेहूँ रोटी, जो मो सों बन पाई ता संग डरी लाई हूँ गुड़ की,दो अब भोग लगाई का भावै तेरे मन कान्हा, जानै को यदुराई - नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
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