गरमी गरमी ते गरमी मिली, गरम रह्यो फिर आज गरमी ते गरमी घटी, कैसौ गरम रिवाज कैसौ गरम रिवाज, ठंड पे बहुतै भारी हुये अधमरे आज, गरमी है अत्याचारी सुनौ सखा उत्कर्ष, रखौ रसना में नरमी वरना उल्टे हाथ, प… Read more »
गरमी गरमी ते गरमी मिली, गरम रह्यो फिर आज गरमी ते गरमी घटी, कैसौ गरम रिवाज कैसौ गरम रिवाज, ठंड पे बहुतै भारी हुये अधमरे आज, गरमी है अत्याचारी सुनौ सखा उत्कर्ष, रखौ रसना में नरमी वरना उल्टे हाथ, प… Read more »
छंद : कुण्डलियाँ Chhand :Kundaliyan (1) छंद रचो ऐसे सभी, पढ़त सुनत आनंद हिंदी का उत्कर्ष हैं, हिंदी वाले बंध हिंदी वाले बंध, शिल्प जिनका है रोचक गति, यति, लय हैं अंग, पढ़े लेखक या पाठक … Read more »
कुंडलियाँ Kundaliyan Chhand 【सोमवार】 देवो के वह देव है, भोले शंकर नाम ध्यान धरो नित नेम से, अंत मिले हरि धाम अंत मिले हरिधाम, पार भव के हो जाये मनचाहा सब होय, साथ सुख समृद्धि पाये कहे भक्त उत्कर्ष, ना… Read more »
दोहा ----- लेख भले ही चोर लो,कला न पावें चोर लिखना मेरा कर्म है,समझ सके कब ढोर रोला ------ समझ सके कब ढोर,काम भूसा से रहता । कुछ गुण रहे विशेष,चोर चोरी तब करता । सुनो “सुमन उत्कर्ष”,हवा से ही पात हलें । चोरी सकें न रोक ,छुपा लो लेख भले… Read more »
दोहे मातृ मूल्य समझे नही, देख गजब संजोग अपनी माता छोड़ के, पाहन पूजत लोग दोनों की महिमा बड़ी, किसका करूँ बखान माँ धरती के तुल्य है,पिता आसमाँ जान कुण्डलियाँ नंगे पग, तपती धरा,मास रहा जब जेठ भिक… Read more »
!! माँ : MAA !! मातृ मूल्य समझे नही,देख गजब संजोग अपनी माता छोड़ के,पाहन पूजत लोग दोनों की महिमा बड़ी,किसका करूँ बखान माँ धरती के तुल्य है,पिता आसमाँ जान नंगे पग, तपती धरा, मास रहा जब जेठ भिक्षा मांगी मात ने, भरा पुत्र का पेट भ… Read more »
कुण्डलिया Kundaliyan बीती बातें भूल मत, बीती देती सीख बीती से नव सर्जना, बीती नवयुग लीक बीती नवयुग लीक, बढ़े चल जुड़कर आगे बीती पर कर शोध,छोड़ मत इसको भागे कहे मित्र उत्कर्ष , यहाँ यादें है जीती क्यों भूलो फिर… Read more »
Utkarsh Kundaliya कुंडलिया छंद कुंडलिया छंद Utkarsh Kundaliya कुंडलिया छंद का उदाहरण कुंडलिया छंद का उदाहरण कुंडलिया छंद का उदाहरण कुंडलिया छंद का उदाहरण कुंडलिया छंद का उदाहरण कुंडलिय… Read more »
छंद : कुण्डलिया Kundaliyan Chhand (1) अज्ञानी तेरे बिना, ज्यो जल बिन हो मीन कृपा करो माँ शारदे, विनती करे नवीन विनती करे नवीन, सूझ कब तुम बिन माता दो मेधा का दान, मात मेधा की दाता जग करता गुणगान, मात तुम आदि भवा… Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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