मुक्तक माला प्रेम करो तज मोह , नही मन का यह गहना । निर्मल पावन प्रेम , गुणीजन का यह कहना । प्रेम बचे बस एक , नही जग में कुछ रहता । छोड़ यही यह दंभ , मिलो सबसे मन कहता । --------------------------------------------- … Read more »
मुक्तक माला प्रेम करो तज मोह , नही मन का यह गहना । निर्मल पावन प्रेम , गुणीजन का यह कहना । प्रेम बचे बस एक , नही जग में कुछ रहता । छोड़ यही यह दंभ , मिलो सबसे मन कहता । --------------------------------------------- … Read more »
मुक्तक : 2212 1222 212 122 वो दूर जा रहे तो,हम दूर हो गये है । उनकी खुशी की खातिर मजबूर हो गये है । है बेवफा जमाना हम जानते नही थे । कर प्यार बेवफा से मशहूर हो गए है । (२) कर प्रेम राधिका सा,मोहन हमे बनाना । हो वाय… Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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