उ ठे धूल की जब जब आँधी, तो जलधार जरूरी है उठे धूल की जब जब आँधी, तो जलधार जरूरी है बहुत हुआ जुर्मों को सहना, अब संहार जरूरी है आज एक नारी की इज्ज़त, लुटती रही भीड़ भर में खड़े रहे कुछ मौन साध कर, कुछ दुबके अपने घर में कुछ के अ… Read more »
उ ठे धूल की जब जब आँधी, तो जलधार जरूरी है उठे धूल की जब जब आँधी, तो जलधार जरूरी है बहुत हुआ जुर्मों को सहना, अब संहार जरूरी है आज एक नारी की इज्ज़त, लुटती रही भीड़ भर में खड़े रहे कुछ मौन साध कर, कुछ दुबके अपने घर में कुछ के अ… Read more »
खोज कलम हे ! कलमवीर कहाँ लेखनी है वो अब जो, लिखे वीरता वीरों की लिखे न अब क्यों रही व्यथा जो,जनमानस की पीरों की आखिर इसको किसने रोका, क्यों ये इतनी बाध्य हुई कौन टोटका हुआ बताओ, क्या ये कहो, असाध्य हुई कौन लगाया बोली इसकी… Read more »
तांटक छंद : Tantak Chhand चोरी छिपकर वार किया है, जिन नापाकी श्वानों ने । कभी न उनको सबक सिखाया, गाँधीवादी गानों ने । मार्ग अहिंसा का अपनाना, कलयुग में कायरता है । जो इसको अपनाता है वह, कायर जैसे मरता है । कितनी… Read more »
हिंदी की जय बोलो हिंदी, भाषा बड़ी सुहानी है हिंदी गौरव हिन्द देश का, हिंदी हरि की वाणी है है मिठास हिंदी भाषा मे, पुरखो का यह मान रही वीरों का भुजबल थी ये ही, अपना स्वाभिमान रही मात भारती के ललाट पे, तेज लिये जो बिंदी है और… Read more »
बहुत हुआ मोदीजी लेकिन,अब बातों में सार नही । खामोशी को साधे रहना,वीरों का श्रृंगार नही । मारो इनको या दुत्कारो,ये लातों के भूत रहे । बहुत कर लिया अब तक लेकिन,अब कुत्तों से प्यार नही । Read more »
पीले हाथ किये बाबुल ने,अपनी बेटी ब्याही है । अब तक तो कहलाई अपनी,अब वो हुई परायी है ।। नीर झलकता है पलको से,बेला करुणा की आयी । चली सासरे वह निज घर से,दुख की बदली है छायी ।। मात-पिता,बहिना अरु भाई,फूट - फूट कर रोते है । अपनी प्यारी लाडो से,द… Read more »
बेटियाँ - Betiyan [ तांटक छंद ] पीले हाथ किये बाबुल ने,अपनी बेटी ब्याही है अब तक तो कहलाई अपनी,अब वो हुई परायी है नीर झलकता है पलको से,बेला करुणा की आयी चली सासरे वह निज घर से,दुख की बदली है छायी मात-पिता, बहिना अरु भाई,फूट - फ… Read more »
सीमायें : Border छंद : तांटक, रस-वीर,गुण-ओज -------------------------------------- खादी पहने घूम रहे कुछ, जो चोरो के भाई हैं ऐसे लोगो के कारण ही,दुख की बदली छाई हैं चेत करो अब सोये शेरो,इन्हें सबक सिखलाना है नमक हरामी करने वालो,को मतलब बतला… Read more »
शीर्षक : मेरा कृष्णा विधा : तांटक छंद ________________________________ पाप बढे जब भी धरती पर,तुमको सभी पुकारे है । रूप लिया गिरधर तब तुमने,आकर कष्ट उबारे है । कोइ कहे मन मोहन छलिया,काली कमली वारे है । जसुदा के लल्ला मतवारे, मेरे गिरधर प्यारे है । Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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