छन्द : पञ्चचामर विधान- 【 121 212 121 212 121 2】 चार चरण, क्रमशः दो-दो चरण समतुकांत --------------------------- उठो ! बढ़ो, रुको नहीं, करो, मरो, डरो नहीं बिना करे तरे नहीं, बिना करे नहीं कहीं पुकारती तुम्हे धरा, दिखा शरीर शक्ति को … Read more »
छन्द : पञ्चचामर विधान- 【 121 212 121 212 121 2】 चार चरण, क्रमशः दो-दो चरण समतुकांत --------------------------- उठो ! बढ़ो, रुको नहीं, करो, मरो, डरो नहीं बिना करे तरे नहीं, बिना करे नहीं कहीं पुकारती तुम्हे धरा, दिखा शरीर शक्ति को … Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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