रट लै रट लै हरी कौ नाम रट लै रट लै हरी कौ नाम, प्राणी भव तर जायेगौ रे प्राणी भव तर जायेगो, तेरो जनम सुधर जायेगौ रट लै रट लै हरि कौ...... बड़े जतन तन मानुस पायौ मोहपाश में समय गँवायौ कोउ न आवै काम अंत में, रे जब ऊपर जायेगौ … Read more »
रट लै रट लै हरी कौ नाम रट लै रट लै हरी कौ नाम, प्राणी भव तर जायेगौ रे प्राणी भव तर जायेगो, तेरो जनम सुधर जायेगौ रट लै रट लै हरि कौ...... बड़े जतन तन मानुस पायौ मोहपाश में समय गँवायौ कोउ न आवै काम अंत में, रे जब ऊपर जायेगौ … Read more »
जनक सुता माँ जानकी,अरु दशरत सुत राम । श्री चरणों मे आपके,मेरा नमन प्रणाम ।। - उत्कर्ष अज्ञानी ठहरा प्रभो,नहीं तनिक भी ज्ञान । क्षमा करो मम भूल हे,पवन पुत्र हनुमान ।। - उत्कर्ष ज्ञान दायनी भगवती,रखो कलम का मान । तुरत संभालो काज म… Read more »
नजारों में कहाँ अब हम,नहीं पहचान पाओगे । मगर जिंदा अभी हम हैं,कभी तो जान जाओगे । भुला सकते नहीं हमको,भगत हम श्याम के ठहरे । चले आयेंगे यादों में,भजन जब आप गाओगे ।। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष श्रोत्रिय निवास बयाना +91 9549899145 Read more »
===== उत्कर्ष कृत दोहे ==== गजमुख की कर वंदना,धर शारद का ध्यान । पञ्च देव सुमिरन करूँ,रखो कलम का मान ।। ==============≠==== ईश्वर के आशीष से,दूने हो दिन रात । बिन मांगे सबको मिले,मेरी यही सौगात ।। =================== अधर गुलाबी मधु भरे,तिरछे नैन कटार… Read more »
आरक्षण Aarakshan/Reservation (गीत) आरक्षण का दानव खाता, हक मेरे जीवन का फिर भी खुद को भूखा कहता, शायद यत्न हनन का आरक्षण का दानव खाता, हक मेरे जीवन का...... अर्थ स्थिति डामाडोल पर, नहीं रियारत मुझे मिली वर्षो से उ… Read more »
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भुजंगप्रयात छंद [Bhujangprayat Chhand] विधान : यगण×4 कुल 12 वर्ण लगी आग देखो,जला प्रेम सारा बना आज बैरी,रहा भ्रात प्यारा कभी सोचता हूँ,दिखावा भला क्यों रहा जो हमारा,उसी ने छला क्यों (2) मिलो आप कान्हा,मिले… Read more »
आपका इंतज़ार ------------------------ बिठा कर हम निगाहों को,किये इन्त'जार बैठे है । मचलता है कि पागल मन,लिए हम प्यार बैठे है । तमन्ना इक हमारी तुम,रही कब दूसरी कोई । चली आओ सनम अब हम,हुए बेक'रार बैठे है । फ़ेसबुक और प्यार ------------------------… Read more »
जिंदगी कभी धूप की तरह , खिल उठती है , वो .... फूलों की मुस्कराती है , बारिश बनकर , तपती धरा को , संतृप्त कर देती है , घोल देती है फिजाओं में महक , कर देती है सुगन्धित , तन , मन , बेहिसाब लुटाती है , प्यार अपना , कभी … Read more »
उसका निखरा रूप था , नागिन जैसे बाल । घायल करती जा रही , चल मतवाली चाल ।। चन्द्र बदन कटि कामनी , अधर बिम्ब सम लाल । नयन कटारी संग ले , करने लगी हलाल ।। जबसे देखा है तुझे , पाया कहीं न चै… Read more »
लिए कंचन सी ' काया वो , उतर आई नजारों में । करें वो बात बिन बोले , अकेले में इशारो में । बिना देखे कही पर भी , मिले ना चैन अब मुझको , गगन के चाँद जैसी वो , हसीं लगती हजारों मे । ===================== सभी करते म… Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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