छंद : असंबधा (asambandha chhand) Author:नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” 2/15/2017 05:46:00 pm छंद : असंबधा (asambandha chhand) (1) ---------------------- कान्हा आओ प्रेम अगन मन लागी है चाहे तेरा दर्शन अब अनुरागी है प्रेमी हूँ तेरा सुन, तुझ बिन मेरा ना तारो प्यारे मोहन गिरधर हे ! कान्हा (2) ✍नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” श्रोत्रिय निवास बयाना +91 84 4008-4006 !! जहाँ हर दिन प्रेम बयार बहे,वह हिंदुस्तान हमारा है !!
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