पर मानी न मैंने भी हार हर दिवस सहा स्वजनी प्रहार पर मानी न मैंने भी हार न कभी झुका न कभी रुका हूँ पथरीले से नहीं डरा हूँ दूना प्रयास किया हरबार पर मानी… Read more »
पर मानी न मैंने भी हार हर दिवस सहा स्वजनी प्रहार पर मानी न मैंने भी हार न कभी झुका न कभी रुका हूँ पथरीले से नहीं डरा हूँ दूना प्रयास किया हरबार पर मानी… Read more »
भोर भयी दिनकर चढ़ आया । दूर हुआ तम का अब साया ।। कर्मवीर तुम अब तो जागो । लक्ष्य साध यह आलस त्यागो ।। हार जीत सब कर्म दिलाता । ध्यान धरे वह मंजिल पाता ।। हार कभी न कर्म पर भारी । यह सब कहते नर अरु नारी ।। कर्म बड़ा है भाग्य से,लेना इतना जान । क… Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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