उत्कर्ष दीप जुगलबंदी - ०२ नहीं होता अशुभ कुछ भी, सदा शुभ ये मुहब्बत है बसाया आपको उर मे, तुम्हीं में आज भी रत है बताऊँ मैं प्रिया कैसे, रहीं जब दूर तुम मुझसे मिलन हो,श्याम श्यामा सा, कहो क्या ये इजाजत है - नवीन श्रोत्रिय उत्कर्… Read more »
उत्कर्ष दीप जुगलबंदी - ०२ नहीं होता अशुभ कुछ भी, सदा शुभ ये मुहब्बत है बसाया आपको उर मे, तुम्हीं में आज भी रत है बताऊँ मैं प्रिया कैसे, रहीं जब दूर तुम मुझसे मिलन हो,श्याम श्यामा सा, कहो क्या ये इजाजत है - नवीन श्रोत्रिय उत्कर्… Read more »
उत्कर्ष जुगलबंदी तुम्हारा देखकर चेहरा, हमें तो प्यार आता है तुम्हारे हाथ का खाना, सदा मुझको लुभाता है बसे हो आप ही दिल मे, बने हो प्राण इस तन के तुम्हारी आँख का काजल, मगर हमको जलाता है नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष तुम्हारी बात पर सज… Read more »
(१) तेज तपन, बनी हूँ विरहन जलता मन, (२) आखिरी आस अब होगा मिलन बुझेगी प्यास (३) फाल्गुनी रंग चहुँ ओर गुलाबी पीव न संग (4) रात अँधेरी मेंरा चाँद ओझल उसी को हेरी (5) निगाहें… Read more »
छंद : मत्तग्यन्द सवैया ------------------------------- जोगिन एक मिली जिसने चित, चैन चुराय लिया चुप मेरा । नैन बसी वह नित्य सतावत, सोमत जागत डारिहु घेरा । धाम कहाँ उसका नहिं जानत, ग्राम, पुरा, बृज माहिंउ हेरा । कौन उपाय करूँ जिससे वह, मित्र करे … Read more »
छंद : मत्तग्यन्द सवैया ------------------------------- नैनन ते मद बाण चला, मन भेद गयी इक नारि निगोरी । राज किया जिसने दिल पे, वह सूरत से लगती बहु भोरी । चैन गयो फिर खोय कहीँ, सुधि बाद रही हमकूँ कब थोरी । प्रे… Read more »
एक सुन्दर सी नार,वाको रूपहु निखार । जाके लाल लाल होट, नयन कटारि है ।। बोले हँस हँस बोल,मन मेरो जाय डोल । है गोल गोल कपोल,सूरत की प्यारि है ।। मनभावन है बोली,और एकदम भोली । लागे अप्सरा हो जैसे,वो सबसे न्यारि है ।। लगा नैनो में कजरा,सज़ा बालों में गजरा ।… Read more »
गागर लेकर जाय रही,जमुना तट गूजरि एक अकेली । देखत केशव पूछ उठे,कित है सब की सब आज सहेली । गूजरि देख कहे सुन लो,सब जानत माधव नाय पहेली । क्योकर पूछत हो हमको,तुम क्योकर बाद करो अठखेली । : नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष Read more »
साजन तेरे देश की,है कैसी यह रीत । जित देखूँ में झांक कें,उते मिले बस प्रीत ।। सजनी मरुधर देश ये,है वीरो की खान । आपस में मिल जुल रहें,यहाँ राम रहमान ।। साजन तेरे देश के,अलग थलग है रंग । कहीँ बजत है दुंदुभी,कहीँ बजत है चंग ।। सजनी मेरा … Read more »
बिना तेरे रहे हम यार हमको था गवारा कब । किया था प्रेम तुमसे यार पर तुमने निहारा कब । जुडी सांसे फकत तुमसे,तुम्ही इक आरजू मेरी । चले आते सनम फिर भी,मगर तुमने पुकारा कब । नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” श्रोत्रिय निवास बयाना + 91 84 4008-4006 Read more »
राज-ऐ-दिल -------------------- मोहब्बत है सनम तुमसे, खुले दिल आज कहते है । छुपाया था जो' वर्षो से, सुनो ! वो राज कहते है । नही जीना तुम्हारे बिन, तुम्ही हो जिंदगी मेरी । रही दिल में सदा से तु… Read more »
उत्कर्ष कवितावली का संचालन कवि / लेखक नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष द्वारा किया जा रहा है। नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर वैर तहसील के गांव गोठरा के रहने वाले हैं।
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